अपने स्वर्णिम दिनों की बाहें जोहती बिहार की शिक्षा व्यवस्था।

प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के अवशेष।Image Credit: nalandauniversity.wordpress.com
— अरीबा नेयाज़
पटना 8 सितम्बर । शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीनकाल से ही बिहार का गौरवशाली इतिहास रहा है । नालंदा विश्वविद्यालय, उदयतंपुरा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय जैसे संस्थान केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे।
चीन जापान कोरिया और ग्रीस जैसे देशों से लोग शिक्षा प्राप्त करने नालन्दा विश्वविद्यालय आते थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में मौर्य काल में हुई थी। गुप्त काल और हर्षवर्धन के काल में भी शिक्षा के इन मंदिरों को भरपूर संरक्षण और समृद्धि मिली। चीनी यात्री हव्नेसांग के वर्णन के अनुसार यहां लगभग 10000 छात्र और 2000 शिक्षक रहते थे।
अंग्रेजों के शासन काल में भी बिहार में कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई। 1863 में पटना कॉलेज, 1927 में पटना साइंस कॉलेज और 1940 में पटना विमेंस कॉलेज की स्थापना हुई जो की आज भी राज्य के उच्च शिक्षा में रीढ़ की हैसियत रखते हैं। बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की स्थापना सर्वे ट्रेनिंग स्कूल के नाम से हुई जो अब एनआईटी पटना के नाम से जाना जाता है। 70 के दशक तक पटना, रांची, गया, भागलपुर बिहार में उच्च शिक्षा के प्रमुख केंद्र रहे उच्च गुणवत्ता और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध थे।
परंतु यह विडंबना ही है कि जिस राज्य का इतिहास इतना गौरवशाली रहा हो वहां के छात्र आज उच्च शिक्षा के लिए पलायन करने पर बाध्य हैं। 70 के दशक के बाद तत्कालीन सरकारों की उपेक्षा, शिक्षण संस्थानों के राजनीतिकरण और नए उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों के अभाव के कारण स्थिति दयनीय होती चली गई।
आज बिहार के छात्र-छात्रायें अच्छी उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली, बैंगलोर और चेन्नई जैसे शहरों में जाने पर विवश है, जिसके कारण उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है साथ ही अभिभावकों को भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है।
वर्ष 2000 में बिहार के बंटवारे और झारखंड राज्य की स्थापना के बाद यहाँ के उच्च शिक्षा की स्थिति और दयनीय हो गई। आर आई जमशेदपुर ,इंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद, सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची और बीआईटी मिश्रा जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान झारखंड के हिस्से में चले गए। अव्यवस्था और शिक्षण संस्थानों में व्याप्त भष्टाचार ने रही सही कसार पूरी करदी।
इसके अलावा शिक्षा के मद् में आर्थिक कमी के कारण कॉलेजों में शिक्षकों की बहाली बंद हो गई– आज शिक्षण संस्थानों में लगभग 35% रिक्तियां है जिसका प्रभाव सीधे-सीधे शिक्षा पर पड़ता है। छात्र कॉलेज तो जाते हैं पर पढ़ाई नहीं होती, समय पर परीक्षा नहीं होती। परिणाम आने में विलंब के कारण छात्र-छात्राओं को बिहार से बाहर भी नामांकन कराने में परेशानियां आती हैं और कभी कभी प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित न हो पाने के कारण देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने का उनका सपना अधूरा रह जाता।
बिहार के छात्र अत्यंत मेहनती होने के लिए जाने जाते हैं और इतनी कठिनाइयों के बावजूद भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान और एम्स जैसे अन्य प्रतिष्ठित परीक्षाओं में बड़ी संख्या में सफल हो कर आते हैं।
आवश्यकता है कि राज्य में उच्च शिक्षा का बेहतर प्रावधान हो ताकि वैसे छात्र जो आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण बाहर के विश्वविद्यालयों में दाखिला नहीं ले पाते उन्हें स्थानीय तौर पर ही अच्छी शिक्षा की सुविधा मिल सके। इसके साथ साथ बहुत सी लड़कियों के अभिभावक उन्हें बाहर जाकर पढ़ने की आजादी नहीं देते। ऐसे में समाज में बराबरी के साथ आगे बढ़ पाना लड़कियों के लिए काफी कठिन हो जाता।
हाल ही में केंद्र सरकार ने अपनी प्रस्तावित नई शिक्षा नीति पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से राय जानी है । लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक पत्र लिखकर इस मुद्दे पर अपनी राय देने में असमर्थता जाहिर की। उन्होने विधानसभा सत्र, बाढ़ और सूखे का हवाला देते इस पर विचार के लिए और समय मांगा है । हालांकि नीतीश कुमार ने साफ नहीं किया कि कब तक वह अपनी राय से केंद्र को अवगत करा देंगे।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कुछ कदम उठाये हैं । शिक्षा बजट में 2017-18 में 10.5 प्रतिशत और 2018-19 में 25 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। हालांकि पिछले एक दशक इंजीनियरिंग चिकित्सा और प्रबंधन के कई संस्थानों की स्थापना की गई है जैसे कि बिहार में भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान आईआईटी ,हाजीपुर में प्लास्टिक इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट और होटल प्रबंधन संस्थान ,पटना में चाणक्य विधि विश्वविद्यालय मोतिहारी और गया में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना भी की गई है लेकिन प्रोफेशनल और टेक्निकल संस्थाओं की अभी भी भरी कमी है। साथ ही संस्थाओं की गुणवत्ता पर ध्यान देने की सबसे ज़्यादा ज़रुरत है।
अगर उच्च शिक्षा की स्थिति शीघ्र ही नहीं सुधरी तो बिहार से मेघावी छात्रों का पलायन जारी रहेगा और बहुत से संसाधन विहीन छात्र उच्च शिक्षा से वंचित होते रहेंगे। हमें आशा है की अगर बिहार के उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रतिष्ठा और गुणवत्ता पूर्ण स्थापित कर दी जाए तो बिहार एक बार फिर शिक्षा के क्षेत्र में अपने गौरवशाली इतिहास की पुनर्वृत्ति करेगा।
(अरीबा नेयाज़ दिल्ली यूनिवर्सिटी में स्नातक -जर्नलिज्म के अंतिम वर्ष की छात्रा हैं।)