अपनी ही फिल्म के एक गाने को इरफ़ान ने कैसे जिया ज़िन्दगी में!

इरफ़ान खान की अदाकारी से एक दर्शक के पूरी तरह रूबरू होने की दास्तान।

इरफ़ान खान ( फाइल फोटो) क्रेडिट : https://www.flickr.com/photos/sibtainn/3280765346/sizes/l/

इरफ़ान खान ( फाइल फोटो) क्रेडिट : एडिटेड https://www.flickr.com/photos/sibtainn/3280765346/sizes/l/

–फ़ैयाज़ इक़बाल

जन ओपिनियन, पटना 1 मई: ‘मैंने दिल से कहा, ढूंढ लाओ खुशी नासमझ ले आया ग़म तो ग़म ही सही’ ये पंक्तियां कुछ सालों पहले इरफान खान अभिनीत फिल्म “रोग” के एक गाने का है। आज जब हम इरफ़ान खान के न रहने का ग़म मना रहे तो आइये जानते हैं की यह पंक्तियां उनकी ज़िंदगी पर कितना सटीक बैठती हैं, या ऐसा कहना शायद ज़्यादा सही होगा कि इरफान ने इन पंक्तियों को अपनी ज़िंदगी में कैसे बरता है।

लन्दन में इलाज कराने के दौरान अपने मित्र अजय ब्रह्मात्मज को शेयर  किये गए अपने पत्र में, जिसे News Laundry Hindi ने प्रकाशित किया है, इरफान लिखते हैं, “फिर एक दिन यह अहसास हुआ… जैसे मैं किसी ऐसी चीज का हिस्सा नहीं हूं, जो निश्चित होने का दावा करे. ना अस्पताल और ना स्टेडियम. मेरे अंदर जो शेष था, वह वास्तव में कायनात की असीम शक्ति और बुद्धि का प्रभाव था. मेरे अस्पताल का वहां होना था. मन ने कहा. केवल अनिश्चितता ही निश्चित है।

“इस अहसास ने मुझे समर्पण और भरोसे के लिए तैयार किया. अब चाहे जो भी नतीजा हो, यह चाहे जहां ले जाये, आज से आठ महीनों के बाद, या आज से चार महीनों के बाद या फिर दो साल. चिंता दरकिनार हुई और फिर विलीन होने लगी और फिर मेरे दिमाग से जीने-मरने का हिसाब निकल गया. पहली बार मुझे शब्द ‘आज़ादी‘ का एहसास हुआ, सही अर्थ में! एक उपलब्धि का अहसास.”

उन्होंने अपने आखिरी ऑडियो (जिसे फिल्म ‘इंग्लिश मीडियम’ के प्रोमोशन के लिए जारी किया था) में भी अपने अनुभवों के ज़रिए ज़िन्दगी की इन्हीं हक़ीक़तों का उल्लेख किया है। जैसे ज़िन्दगी में हमेशा सकरात्मक विचार रखिये, ज़िन्दगी चलती है, बीमारी से वार्तालाप चल रहा है, देखते हैं ऊंठ किस करवट बैठेगा और इसी तरह की बात जिसका सार यह है कि ग़म कितना भी हो ज़िन्दगी चलती है, बस जीते जाओ। हर दुख को हरण कर लो ,क्यंकि हर दुख के बाद सुख का पल ज़रूर आता है ।

संयोग यह है की मुझे भी इरफान को जानने का मौका ‘रोग’ फ़िल्म से ही मिला। तब हमने बोर्ड पास किया था, फिल्मों के बारे में सीख रहा था। डीवीडी का दौर था। घर मे कंप्यूटर आ चुका था, सिनेमा हॉल जाने की इजाज़त नही थी। सीडी और कंप्यूटर के जुगल के ज़रिए यह फ़िल्म हमने देखी थी। 
समीक्षकों ने तो तकनीकी एंगल से ‘रोग’ के हर पहलू पर विश्लेषण किया ही होगा लेकिन एक ऐसा दर्शक जिसे न बारीकियों का ज्ञान हो, न ऐसी कोई मंशा, उसकी रुचि तो बस ऐसे मनोरंजन में थी जो दिल को छू जाए। लेकिन मुझे जो मिला वो इससे बढ़ कर था। फ़िल्म के खत्म होने से पहले ही मैं ‘गाने के बोल’ और इरफान खान के अभिनय का दीवाना हो चुका था। 

ज़ाहिर है मुझसे बड़े लोग इरफान खान के अभिनय से पहले से ही परिचित होंगे पर, मैं उनसे ‘रोग’ फ़िल्म के बाद ही रूबरू हो पाया। उसके बाद इरफान खान की नई नई फिल्मों का आगमन होता गया और मैं उनके अभिनय का दीवाना होता चला गया। उनसे परिचय की मेरी जैसी कहानी हज़ारों बल्कि लाखों दर्शकों की होगी। पर खुद के बारे में मैं कह सकता की उनके अभिनय ने मुझ पर ज़बरदस्त छाप छोड़ा।

गंभीर और लीक से हटकर कलाकारों की फिल्मों को ढूंढ ढूंढ कर देखना और उन्हें समझने का चस्का लग गया। समझ का दायरा बढ़ने के साथ साथ स्टारडम की चाक चौंध फीकी पड़ती गयी। बॉलीवुड की मायावी और गलैमरस कमर्शियल फिल्में बेरंग लगने लगीं। आम ज़िन्दगी और ज़मीन से जुड़े मुद्दों को अपने प्रभावशाली अभिनय के ज़रिये  समाज को संवेदनशील बनाने की जतन में लगे कलाकारों से जुड़ता चला गया।

इस बीच अभिनय की बारीकियों को समझने का मौका मिला, इसके बाद तो मेरी नज़र में इरफान का कद और भी ऊंचा हो गया। आंखों के हरकत भर से स्तंभित कर देने वाली उनकी अदाकारी का तो कोई जवाब नही था। साथ ही, जिस तरह इरफान खुद को अपने किरदार में फिट कर लेते थे वो अतुलनीय है। हॉलीवुड फ़िल्मों के किरदार हो या किसी क्षेत्रीये चरित्र की भूमिका, इरफान उस किरदार में विलीन हो जाते थे या यूं कहें कि वो किरदार इरफान में बस जाता था। मंत्रमुग्ध कर देनी वाली इसी प्रतिभा ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलायी।

बुधवार को जब इरफान खान के न रहने की खबर मिली तो ऐसा लगा के एक कला का अंत हो गया। वह कला जो सिल्वर स्क्रीन पर की गई प्रभावशाली अदाकारी के दम पर समाज को आईना दिखाने का काम करती है। वह कला जिसके बारे में किसी फिलॉस्फर ने कहा है: The art has the power to influence or change the society.

अफसोस इस बात का है कि आगे हम इरफान की अदाकारी के इन अनुभवों से वंचित रहेंगे। जब भी गंभीर और उत्कृष्ट कलाकारों की सूची बनेगी, तो निश्चित तौर पर उस फ़ेहरिस्त में इरफान खान का नाम अग्रिम पंक्ति में होगा।

इरफान खान को श्रद्धांजलि ।

(फैय्याज़ इक़बाल कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजिस्ट हैं, यह लेखक के अपने विचार हैं । )

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