जब कलाम साहब ने लोगों को हैरान कर दिया

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलम के जीवन का सफर एक आम इंसान को जीवन में कुछ हासिल करने का हौसला देती है (Image courtesy: https://akrc.res.in)
स्वतंत्र भारत के 11वें राष्ट्रपति और विश्व प्रसिध्द वैज्ञानिक डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम साहब की आज पुण्य तिथि है।
—मो. अब्दुल्लाह वारसी
भारत के मिसाइल मैन के रूप में प्रसिद्ध कलाम साहब को आज ही के दिन 27 जुलाई 2015 को आई. आई. एम. शिलॉन्ग में एक लेक्चर के दौरान दिल का दौड़ा पड़ा था। उन्हें फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया लेकिन उन्हें बचाया नही जा सका और 83 वर्ष की उम्र में कलाम साहब दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन कलाम साहब के उच्च विचार और आदर्श आज भी हमारे बीच मौजूद हैं।
कलाम साहब को 1981 में भारत सरकार ने पद्म भूषण और फिर 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया। भारत के सर्वोच्च पद पर नियुक्ति से पहले भारत रत्न पाने वाले कलाम साहब देश के केवल तीसरे राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले यह मुकाम सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ.जाकिर हुसैन ने हासिल किया था।
जब कलम साहब ने लोगों को हैरान कर दिया
कलाम साहब की सादगी, बच्चों से स्नेह और लोगों के प्रति उनके मधुर व्यहवार के सैकडों किस्से हैं जिससे हर वर्ग, धर्म और उम्र के लोग उनकी तरफ आकर्षित होते थे। नीचे उल्लेखित दो किस्सों से उनके जीवन के उच्च आदर्शों की एक झलक मिलती है।
एक बार कलाम साहब आईआईएम अहमदाबाद गए थे। समाहरोह के बाद उन्होंने 60 बच्चों के साथ खाना खाया। लंच ख़त्म होने के बाद, बच्चें उनके साथ एक फोटो खिचवाना चाहते थे। लेकिन कार्यक्रम के आयोजको ने बच्चों को ऐसा करने से रोका। डॉ कलाम खुद आगे बढ़कर बच्चों के साथ फोटो खिचवाई, यह देखकर सभी हैरान रह गए।
आई.आई.टी. वाराणसी के दीक्षांत समारोह में कलाम साहब को मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया। स्टेज पर 5 कुर्सियां रखी थी। बीच वाली कुर्सी डॉ कलाम की थी और बाकि चार विश्वविद्यालय के शीर्ष अधिकारियों के लिए। कलाम साहब ने यह देखा कि उनकी कुर्सी अन्य की तुलना में थोड़ी ऊँची है। तब उन्होंने इस पर बैठने से मना कर दिया और उस पर विश्वविद्यालय के कुलपति को बैठने के लिए अनुरोध किया।
अखबार बेचने से इसरो तक का सफ़र
कलाम साहब का जन्म 15अक्टूबर 1931ई. को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ। उनके पिता ज़ैनुल आबेदिन पेशे से मछुआरा थे। जो ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। पांच भाई और पांच बहनों वाले परिवार को चलाने के लिए पिता की आमदनी कम पड़ जाती थी।
इसलिए शुरुआती शिक्षा जारी रखने के लिए कलाम साहब को अखबार बेचने का काम भी करना पड़ा। सन् 1962ई. में कलाम साहब इसरो में पहुंचे। इन्हीं के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बनाया। 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित किया गया और भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। कलाम ने इसके बाद स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भारतीय तकनीक से बनाईं।
अखबार बेचने से इसरो तक का सफ़र
सन्1992ई. से 1999ई. तक कलाम साहब रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे। इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट भी किया और भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया। कलाम साहब ने विजन 2020 दिया। इसके तहत कलाम साहब ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की के जरिए 2020 तक अत्याधुनिक करने की खास सोच दी। कलाम साहब भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। ए.पी.जे.अब्दुल कलाम साहब ने 18 जुलाई 2002 को स्वतंत्र भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला।
यह कहना ग़लत नहीं होगा की कलाम साहब के जीवन का सफर ही हैरान कर देने वाला था। उनके जीवन से एक आम इंसान को बहुत बड़े लक्ष्य का सपना देखने की प्रेरणा मिलती है।
(लेखक उर्दू प्राथमिक विद्यालय, सारण , बिहार में शिक्षक हैं)